हेवी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग
भारी विद्युत उपकरण उद्योग ऊर्जा क्षेत्र और अन्य औद्योगिक क्षेत्रों की आवश्यकताओं को पूरा करता है। यह क्षेत्र बॉयलर, टर्बो जनरेटर, टर्बाइन, ट्रांसफार्मर, स्विचगियर, रिले और संबंधित सहायक उपकरण जैसे प्रमुख उपकरण का विनिर्माण करता है।
इस उद्योग का कार्य-निष्पादन देश के विद्युत क्षमता अभिवृद्धि कार्यक्रम के साथ घनिष्ठता से जुड़ा हुआ है। इसलिए, भारत की बिजली क्षेत्र की आवश्यकता बाजार के रुख को भी संचालित करती है।
इस उद्योग में सार्वजनिक, निजी और बहुराष्ट्रीय मूल उपकरण विनिर्माता का अच्छा मिश्रण है जिसके परिणामस्वरूप देश में भारी विद्युत उपकरणों के विनिर्माण के लिए एक मजबूत आधार है। भारी विद्युत उपकरणों के विविनिर्माताओं ने घरेलू और निर्यात मांग को पूरा करके भविष्य में विद्युत क्षमता अभिवृद्धि लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अपनी संस्थापित क्षमता में वृद्धि की है।
इसके बाद, वैश्विक रुझानों के अनुसार घरेलू विनिर्माताओं ने ताप विद्युत उत्पादन के लिए सब-क्रिटिकल टेक्नोलॉजी (660 मेगावाट की इकाई क्षमता तक) और सुपर क्रिटिकल टेक्नोलॉजी (800 मेगावाट की इकाई क्षमता तक) को आमेलित कर लिया है। 260 मेगावाट यूनिट क्षमता तक गैस टर्बाइन और 1200 किलोवाट की वोल्टेज श्रेणी तक के पारेषण और वितरण उपकरण भी देश में बनाए जा रहे हैं।
इसके अलावा, पारंपरिक ऊर्जा उत्पादन विधि को बढ़ावा देने के लिए, घरेलू विनिर्माता थर्मल सेटों के लिए 800 मेगावाट और उससे अधिक के यूनिट आकार के लिए अल्ट्रा-सुपर-क्रिटिकल टेक्नोलॉजी अपनाने की तैयारी कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के सीपत में दुनिया का पहला एडवांस्ड अल्ट्रा सुपर-क्रिटिकल (एयूएससी) प्रौद्योगिकी आधारित थर्मल पावर संयंत्र स्थापित किया जा रहा है। इसे भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड ,इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च और नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड ने संयुक्त रूप से विकसित किया है।